नारीयोत्तम नैना
भाग-1
"क्या मैं जान सकता हूं आपको पोलिटीशियन से क्या परेशानी है? आपको उनसे दिक्कत क्या है?" एमएलए जितेंद्र ठाकुर ने नैना से पुछा।
"पोलिटीशियन झुठ बहुत बोलते है?" नैना ने सहज होकर उत्तर दिया।
अपने नगर की सीवरेज लाइन की शिकायत म्यूनिसिपल कार्पोरेशन से हल नहीं होने पर नैना क्षेत्र के विधायक जितेन्द्र ठाकुर से मिलने विधायक निवास पर आई थी। उसकी सहेली नूतन भी उसके साथ थी।
"इसमें कौनसी बड़ी बात है नैना जी! आप मुझे ऐसे लोगो के नाम बता सकती है जो झुठ नहीं बोलता हो?"
नैना सोच में पढ़ गई।
"ये किराना दुकान वाले, सब्जी-फल बेचने वाले, कपड़े व्यापारी, ड्राइवर, मिस्री, कार पेन्टर और भी बहुत सारे लोग! ये सब हर दिन अपने व्यापार, अपने रोजगार को बचाने के लिए हजारों झूठ बोलते है। तब यदि हम पोलिटीशियन अपनी कुर्सी बचाने के लिए झूठ बोलते है तो क्या गलत करते है। हमें भी तो अपनी रोजी-रोटी बचाये रखने की चिंता होती है।" जितेंद्र ठाकुर ने समझाया।
"आप अपनी चिकनी चुपडी बातों से भोली-भाली जनता बेवकूफ को बना सकते है। मगर मुझे नहीं। मैं एक पढ़ी लिखी और इक्कीसवीं सदी की अपने कर्तव्य और अधिकारों के प्रति जिम्मेदार और जागरूक नागरिक हूं।" नैना ने दृढ़ता से जवाब दिया।
" अच्छा तो जागरूक देश की जागरूक नैना जी ! मुझे ये बताये! आपके विचार से ये दुनियां सच पर चलती है या झूठ पर!"
विधायक महोदय ने प्रश्न किया।
"निश्चित ही सच पर चलती है।" नैना ने आत्मविश्वास से भरा जवाब दिया।
"यहां मेरी सोच आपसे भिन्न है। मेरा मानना है कि ये पुरी दुनियां झूठ पर चलती है।" जितेंद्र ने कहा।
"कैसे?" नैना ने पुछा।
" समझाता हूं। देखीये हम हर रोज कितने ही लोगों से मिलते है। हमारे पड़ोसी, फ्रेंड्स, ऑफिस में साथ काम करने वाले सहकर्मी, ऑफिस का बाॅस दूधवाला , सब्जी वाला, आदि-आदि!" जितेंद्र ने बताया।
"हां तो?" नैना ने पुछा।
" नैना जी! यदि एक पड़ोसी को दुसरे पड़ोसी के मन की बात पता चल जाये कि वह पहला पड़ोसी दुसरे पड़ोसी के विषय में क्या सोचता है? तब आप यकीन मानिये दोनों में प्रतिदिन झगड़े होना शुरू हो जाये। हम सब भी तो यही करते है। सामने वाले के बारे में अच्छा-बुरा जरूर सोचते है लेकिन दिखावा तो सच का ही करते है। आपने कहावत तो सुनी होगी मुंह में राम बगल में छुरी। अभी आपके मन में मेरे विषय में इससे और अधिक बुरे विचार होंगे यदि वो सम्पूर्ण विचार अगर किसी तरह मैं जान जाऊं तब हो सकता है कि मैं कल से आपको अपने ऑफिस घुसने भी न दूं। मगर आप पुरी कोशिश में है, मुझसे लाख नफरत होते हुये भी शिष्टाचारी होने का स्वांग रचने पर आप विवश है। अब शायद आप समझ गई होगीं की ये दुनिया सच पर नहीं झुठ पर चलती है।" जितेंद्र ने स्पष्ट कर दिया।
नैना की सहेली नूतन ने उसे काॅलेज जाने में विलंब हो रहा है का इशारा किया। दोनों वहां से काॅलेज के लिए जाने वाली थी।
नैना देवास शहर के विकास नगर में रहने वाली यंग और टैलेंटेड खुबसुरत नवयुवती है। पिता महेश सोलंकी, माता तरूणा सोलंकी और छोटी बहन स्मृति के साथ मध्यमवर्गीय छोटा परिवार है नैना का। नैना बहुत अच्छी डिबेटर है। विद्यालयीन और महाविद्यालयीन कितनी ही वाद-विवाद प्रतियोगिता में श्रेष्ठता का पुरुस्कार प्राप्त कर चूकी है। विकास नगर में आये दिन सीवरेज लाइन बंद हो जाने की समस्या खड़ी हो रही थी। नगरवासी नगर निगम देवास में जा-जाकर कई बार विनती कर चूके थे। किन्तु प्रभावी हल न होने पर नैना स्वयं को क्षेत्र के एमएलए के पास जाने रोक न सकी। उसी दिन सांयकाल जब नैना काॅलेज से घर लौटी तब विकास नगर में सीवरेज लाइन का काम गुणवत्तापूर्ण होता देखकर वह बहुत खुश हई। नगर वासियों ने नैना की पीट थपथपाई। नैना पर उसके माता-पिता गर्व कर रहे थे।
*म* नीष अपने बारहवीं अध्ययनरत बेटे विशेष की शरारतों से तंग आ चूके थे। बोर्ड परिक्षाएं सिर पर थी। मगर विशू था कि उसे पढ़ाई के प्रति चिंता ही नहीं थी। उसके माता-पिता चाहते थे कि विशू मेडीकल ऐक्ट्रेंस एक्जाम क्वालीफाई कर ले। मनीष ने नैना से इस संबंध में मदद मांगी। नैना घर पर बच्चों को ट्यूशन देती थी। इस बार विशेष और अन्य तीन को मिलाकर केवल चार स्टूडेंट्स ही नैना ने ट्यूशन देने के लिए चूने। ताकी वह इन्हें उन उंचाईयों तक पहूंचा सके जहां इनके माता-पिता इन्हें देखना चाहते थे। समीर और साहिल पुर्व से अवनी पर मोहित थे। उस पर विशेष ने अवसर पाकर अवनी को प्रपोज कर दिया। अवनी ने विशेष को सीधे-सीधे मना नहीं किया। अपितु लाज और हया का इस प्रकार नाटकीय रूपान्तरण किया कि विशेष अवनी के नाम की माला जपने लगा। चारों टीनएजर्स थे। इसलिए नैना को यह चारो किसी बड़ी चुनौतीपूर्ण कार्य से कम नहीं लग रहे थे। नैना जान चूकी थी कि तीनों फ्रेंड्स अवनी पर लट्टू है और अवनी तीनों को अपने आगे-पीछे घुमा रही है। ट्यूशन के समय तीनों ब्वॉयज का ध्यान पढ़ाई पर कम अवनी पर अधिक होता था। अवनी भी थी की नज़र बचाकर उन तीनों लड़को को प्रोत्साहन देना नहीं भुलती। अवनी का उन लड़को से हाथ मिलाने तक तो ठीक था। मगर विशेष, समीर और साहिल अब अपनी सीमाएं लांघ रहे थे। क्षण भर के लिए उन चारों से नैना ने अपनी आंखें फेरी नहीं की उन लड़को की अभद्र क्रियाकलाप आरंभ हो जाते। अवनी के पैर पर अपना पैर मारना, उसकी जांघों पर हाथ फिराना, अवनी से जबरन गले मिलना, यह सब क्रियाएं उनकी दैनिक नित्य क्रियाएं हो गई थी। एक समय तो नैना को लगा कि इन चारों की पढ़ाई से हाथ जोड़ देवे। आगे भविष्य में कोई बड़ी दुर्घटना घटीत हो गयी तो उसका जिम्मेदार तो नैना को ही समझा जायेगा न! नैना के माता-पिता भी यही चाहते थे कि इन बिगड़ैल मां-बाप के रहीस बच्चों को नैना उनके हाल पर छोड़ दे। इन चारों ने अब डिस्को-पब जाना भी शुरू कर दिया था। विशेष छुपते-छिपाते हुक्का बार जाकर दम लगाना (हुक्का पीना) नहीं भुलता। समीर और साहिल भी उसकी संगत में रंग गये। अवनी अभी नशे से दुर थी। मगर आखिर कब तक? विशेष अब बड़-चढ़कर स्वयं को प्रस्तुत करने लगा था। विशेष स्वयं को समर्थ पुरूषार्थ का अग्र प्रतिनिधि स्वीकार कर चूका था। समीर और साहिल किसी तरह अवनी को हासिल करना चाहते थे। तीनों परस्पर एक-दूसरे को अवनी को प्राप्त करने में अपने रास्ते का रोड़ा समझने लगे थे। विशेष अवसर की तलाश में था। उसे जब मौका मिलेगा वह समीर और साहिल को अपने रास्ते से हटा देगा। तीनों के इरादे भंयकर रूप ले चुके थे। नैना की समझाइश किसी पर कोई असर नहीं कर रही थी। उस पर इन लड़कों की मुंह जोरी से वह डरने भी लगी थी। तीनों लड़को को यहां तक पहूंचाने में अवनी के प्रोत्साहन का बहुत बड़ा योगदान था। अगर वह उन तीनों लड़को को समय रहते रोक देती तो शायद आज यह विकट परिस्थिति निर्मित नहीं होती।
नैना को दीवार पर टंगी स्वामी विवेकानंद जी की तस्वीर दिखाई दी। जिस पर एक स्लोगन लिखा था। स्वामी जी ने कहा था- 'किसी कार्य को सम्पन्न करने के लिए मैं एक हजार बार प्रयास करूंगा। यदि कार्य फिर भी असफल हुआ तब मैं एक बार ओर प्रयास करूंगा।'
स्वामी विवेकानंद जी के वक्तव्य को ग्रहण करने मात्र से नैना का मनोबल बड़ता चला गया। आत्मविश्वास से परिपूर्ण नैना ने एक बार फिर इन चारों को उचित रास्ते पर लाने के प्रयास आरंभ कर दिये।
"अवनी! एक लड़की का शील उसकी सबसे मुल्यावान चीज होती है। और शील भंग सबसे बड़ा अभिशाप। अपने शीलत्व की मान- मर्यादा बनाए रखना हर लड़की का परम कर्तव्य होना चाहिए।" नैना ने अवनी को एकांत में समझाया।
अवनी समझ नहीं सकी की नैना कहना उससे क्या चाहती थी?
"मैडम आप क्या कह रही है मुझे समझ नहीं आ रहा है?" अवनी ने अपनी अनभिज्ञता व्यक्त की।
"समझाती हूं! लड़का और लड़की परस्पर दोस्त रहे, ये अच्छी बात है किन्तु दोस्ती का अर्थ यह कतई नहीं है कि लड़की उन लड़के को मनमानी करने की अनुमति दे दे।" नैना ने समझाया।
अवनी कुछ सतर्क हो गई।
"देखो अवनी! लड़की का शरीर कोई सार्वजनिक वस्तु नहीं है जिसे कोई भी छु सके या घूर सके। इस शरीर पर केवल उसकी स्वामिनी और आने वाले समय में उसके पति का एकाधिकार होता है।" नैना ने खुलकर बताया।
"अवनी! अपनी शक्ति पहचानों। हर किसी लड़के पर मोहित होकर अपनी छवी पाताल तक गिरने मत दो। दृढ़ता के साथ उन लड़को को कहो कि वे लोग तुमसे कोसो दुर रहे। न माने तो तो थप्पड़, चप्पल इत्यादि हथियारों का उपयोग करो। यहां तुम अकेली नहीं हो। पुलिस, समाज सभी तुम्हारे साथ खड़े है। आगे बढ़कर हिम्मत तो करो।" नैना की बातें अभी खत्म नहीं हुई थी।
नैना ने मोबाइल फोन हाथों में लेकर उसमें कुछ वीडियो नैना को बताये। वे एमएमएस के वीडीयो थे।
"अवनी! हम सदैव केंसर, एचआईवी जैसी जानलेवा बीमारीयों के विषय में लापरवाही वश उन्हें इग्नोर कर देते है। हमें लगता है कि ये बीमारियां हमें कभी नहीं हो सकती। इसलिए हम जानबूझकर इन बीमारियों के लक्षण जानने-समझने तक से परहेज करते है।" नैना कहते हुये सोफे पर बैठ गयी।
अवनी की रूचि जागृत हो चूकी थी। वह समझ गई थी कि नैना ने उसे ट्यूशन पर समय से एक घण्टा पुर्व पढ़ाई के लिए अपने घर क्यों बुलाया था।
"कल अगर तुम भी इन लड़कीयों की तरह किसी एमएमएस कांड में फंस गई तो अपने माता-पिता को क्या मुंह दिखाओगी? आंख बंद कर किसी पर भी विश्वास करना मूर्खता है अवनी। समय के साथ प्रत्येक चरण जीवन में घटीत होना प्राकृतिक है। समय पुर्व अनैतिक कार्यों में संलग्नता अप्राकृतिक है और समाज विरोधी है। कहीं कूछ ऊँच-नीच हो गयी तो इसकी सर्वाधिक हानि लड़की को भोगनी होती है।"
नैना ने आगे बताया।
अवनी का ध्यान अभी भी नैना की ओर था।
"गर्भधारण और गर्भपात एक बहुत बड़ी शारीरिक पीड़ा दायक घटनाक्रम है। कुंवारी मां बनना हमारे समाज में आज भी किसी कलंक से कम नही है। और अगर गर्भपात की न्यूज समाज में फैल जाये तो पुरे परिवार का जीवन जीना दूभर हो जाता है।" अवनी अब जाकर चुप हुई। ट्यूशन का समय हो चूका था। साहिल ने द्वार पर बेल बजा दी थी।
अवनी सुप्त अवस्था से जाग चूकी थी। उसे नारीत्व की पहचान हो चूकी थी। अपने पिछले लड़कपन के व्यवहार पर वह शर्मिंदा थी। उसने असभ्य आचरण परित्याग कर भविष्य में मात्र पढ़ाई के प्रति समर्पण का पुरजोर समर्थन नैना के सम्मुख कर किया। नैना अपनी पहली विजय पर उत्साहित थी। मगर अभी तो उसने केवल एक पढ़ाव पार किया था। समीर, साहिल और विशेष को मुख्यधारा में लाकर उन्हें अपने कॅरियर के प्रति सचेत करना अभी शेष था।
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